प्रकृति जलाभिषेक कर यहां करती है स्वंय गुरु पूजन: पाताल में है ब्रहमाण्ड के गुरु का वास

*यहां प्रकृति स्वयं करती है गुरु का पूजन

*पाताल लोक से

*भगवान भुवनेश्वर है,त्रिभुवनेश्वर के गुरु

तीनों लोकों के स्वामी भगवान भुवनेश्वर नाथ जी की महिमां अपरम्पार है ।पाताल लोक में स्थित झ्नकी पिड़ी पर क्रमश त्रिदेव भी पिण्ड़ी के रुप में विराज मान है। जिन पर प्रकृति स्वयं जलाभिषेक करती है। इसी पिण्ड़ी से प्रकट मन्त्र गुरू ही ब्रह्मा,गुरू ही विष्णु,गुरू ही देवों महेश्वर सर्वत्र व्याप्त है।

भारतवर्ष के पवित्रतम तीर्थों में एक पाताल भुवनेश्वर भगवान श्री भुवनेश्वर की महिमा एवं गुरू की गाथा का साकार स्वरूप है। देवभूमि उत्तराखण्ड के गंगोलीहाट स्थित श्री महाकाली दरबार से लगभग 11 किमी. दूर भगवान भुवनेश्वर की यह गुफा वास्तव में अद्भुत, चमत्कारी एवं अलौकिक है। यह पवित्र गुफा जहां अपने आप में सदियों का इतिहास समेटे हुए है, वहीं अनेकानेक रहस्यों से भरपूर है। इस गुफा को पाताल लोक का मार्ग भी कहा जाता है। सच्ची श्रद्वा व प्रेम से इस गुफा में गुरुदेव भुवनेश्वर के दर्शन करने मात्र से ही हजारों हजार यज्ञों तथा अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त हो जाता है और विधिवत गुरू पूजन करने से अश्वमेघ यज्ञ से दस हजार गुना अधिक फल प्राप्त हो जाता है। इसके अतिरिक्त गुरुदेव भुवनेश्वर का स्मरण और स्पर्श करने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। यही कारण है कि तैतीस कोटि देवता भगवान भुवनेश्वर की अखण्ड उपासना हेतु यहां निवास करते हैं तथा यक्ष, गंधर्व, ऋषि-मुनि, अपसराएं, दानव व नाग आदि सभी सतत पूजा में तत्पर रहते हैं तथा भगवान भुवनेश्वर की कृपा करते हैं।

स्कन्ध पुराण के मानस खण्ड में गुरु पूर्णिमां को जन्में श्री वेदव्यास ने इस पवित्र स्थल की अलौकिक महिमा का बखान करते हुए कहा है- गुरुदेव भुवनेश्वर का नामोच्चार करते ही मनुष्य सभी पापों के अपराध से मुक्त हो जाता है तथा अनजाने में ही अपने इक्कीस कुलों का उद्वार कर लेता है। इतना ही नहीं अपने तीन कुलों सहित शिवलोक को प्राप्त करता है।

– रमाकान्त पंत,पाताल लोक से

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