सावधान:रेस्टोरेन्ट का अन्तःसच, शाकाहारी को परोस देते हैं मांसाहार

मैंने पिछले एक साल एक ऐसे रेस्टोरेन्ट में प्रबन्धन का कार्य सम्भाला, जहाँ पर शाकाहारी और माँसाहारी दोनों तरह का खाना बनता है। अपनी आँखों के सामने ऐसा प्रदूषित वातावरण देखना एक ऐसा पीड़ाजनक अनुभव है जिसे शब्दों में बयान करना बहुत ही कठिन है। मैं स्वयं अपने को दोषी मानता हूँ, ऐसे नारकीय वातावरण में कार्य करने के लिये। परन्तु कभी-कभी पारिवारिक जिम्मेदारियाँ ऐसे काम करने को विवश कर देती है।

मुझे इस अनुभव को आप तक पहुँचाना इसलिए जरुरी लगा क्योंकि वे लोग जो ऐसे रेस्टोरेन्ट में खाना खाते हैं और सोचते हैं कि वो पूर्णतः शाकाहारी भोजन ही ग्रहण कर रहे हैं तो वे पूर्णतः गलत है। आइये, आज आपको एक ऐसे ही शाकाहारी-माँसाहारी रेस्टोरेन्ट की रसोईघर यानि किचन की झलक दिखलाते हैं।

सर्वप्रथम तो परिचित करवाते हैं किचन की बनावट से जो सामान्यतः सभी रेस्टोरेन्ट में तीन भागों में बँटी रहती है:

*तन्दूर सेक्शन*
*इण्डियन सेक्शन*
*चायनीज़ सेक्शन*

*तन्दूर सेक्शन*

v यहाँ पर शाकाहारी व माँसाहारी यानि वेज एवं नानवेज तन्दूरी भोजन सामग्री तैयार होती है।

v तन्दूरी रोटी के साथ नान का आटा भी लगाया जाता है, जिसमें खमीर उठाने के लिए और नरम और सुस्वादु बनाने के लिए अण्डे का इस्तेमाल किया जाता है।

v जो टेबल तन्दूर उस्ताद के पास होती है वो एक ही होती है जिस पर रोटी का आटा और नानवेज के सारे आइटम एक साथ रखे रहते हैं।

v जब तन्दूरी मुर्गा या अन्य माँसाहारी तन्दूरी आइटम बनाना होता है तो पहले उस पर मक्खन व तेल का मिश्रण लगाया जाता है। इसके लिए एक डिब्बे में तेल व मक्खन का मिश्रण भरा होता है तथा एक लकड़ी पर कपड़ा बान्ध कर मिश्रण में डाल देते हैं, जिसके द्वारा वह मिश्रण तन्दूरी मुर्गे पर लगाया जाता है तथा उसी लकड़ी व उसी मिश्रण का शाकाहारी लोगों की रोटी / नान पर भी उपयोग किया जाता है।

v किसी भी तन्दूरी डिश जैसे पनीर टिक्का, पनीर पुदीना टिक्का, वेज सीक कबाब को तैयार करने के लिए पहले टिक्का व कबाब बनाये जाते हैं, जिन्हें लोहे की सलाखों में लगाकर तन्दूर में डाला जाता है। यहाँ ध्यान देने योग्य यह है कि इन्हीं तन्दूर की सलाखों का उपयोग मांसाहारी व्यञ्जन जैसे तन्दूरी मुर्गा, चिकन टिक्का, तन्दूरी फिश इत्यादि के लिए भी किया जाता है तथा चाहे आर्डर वेज का हो या नानवेज का, इन सलाखों को कभी धोया भी नहीं जाता है।

v इन सिके हुए, मक्खन लगे तन्दूरी व्यंजन पर मसाला लगाया जाता है, जो एक बड़े बर्तन में रखा होता है तथा इसी में चाहे शाकाहारी हो या मांसाहारी व्यञ्जन, दोनों को लपेट लपेट कर मसाला लगाया जाता है।

*इण्डियन सेक्शन*

v यह रसोई का वह हिस्सा है जहाँ पर सभी सब्जियाँ व दालें बनती हैं। यहाँ पर एक-दो भट्टियाँ व दो टेबलें पास-पास रखी होती हैं।

v टेबल पर सारा कच्चा माल जैसे मावा, पनीर, दूध, दही, क्रीम रखा होता है। उसी टेबल पर मांसाहारी खाने की कच्ची सामग्री जैसे अण्डे, मछली, चिकन रखा होता है।

v भट्टी के पास ही सारे मसाले रखे होते हैं। अब यदि कोई भी आर्डर आता है, चाहे वह शाकाहारी हो या मांसाहारी, कुक (रसोइया) उसको बनाते समय एक ही फ़्रायपान व चम्मच का इस्तेमाल करता है। जैसे उदाहरण के लिए बटर चिकन का आर्डर है तो कुक पहले अपनी बड़ी चम्मच से फ़्रायपान में घी डालेगा, फिर फ़्रायपान में चिकन डालकर उसी चम्मच से हिलायेगा, फिर उसी चम्मच से क्रीम, काजूपेस्ट या कोई भी मसाले जो लेने हैं लेता है, फिर पहले से बनी ग्रेवी, जो हर सब्जी या नानवेज के लिए इकट्ठी बनती है, उसी चम्मच से लेता है। बटर चिकन बनने के बाद फ़्रायपान तो धुलता है, पर चम्मच वहीँ पास रखे पानी भरे तपेलों में डाल देते हैं। किसी दाल को पतला करना हो या ग्रेवी में पानी मिलाना हो तो इसी तपेले का पानी मिलाया जाता है जिसमें हर तरह की वेज-नानवेज लगी चम्मच डालते हैं।

*चायनीज़ सेक्शन*

v चायनीज़ बनाने के लिए भी मुख्यतः दो भट्टियाँ लगी होती हैं एवं साइड टेबल कच्चा माल रखने के लिए होती है।

v यदि आप स्प्रिंग रोल खा रहे हैं तो उसको चिपकाने के लिए अण्डे की जर्दी का उपयोग होता है।

v चिली पनीर के घोल व मंचूरियन के पकोड़ों में भी अण्डे का इस्तेमाल होता है।

v सूप में व कोई भी ग्रेवी की चीज़ बनाने में जो पानी इस्तेमाल होता है वह चिकन स्टाक (चिकन को उबालकर उसका जो पानी बचता है उसे चिकन स्टाक कहते हैं)

v तलने के लिए एक ही कढ़ाई होती है, जिसमें शाकाहार जैसे पापड़, चिप्स व मांसाहार जैसे मछली, चिकन दोनों ही तले जाते हैं।

*अन्य ध्यान देने योग्य बातें*

v सब्जी काटने के लिए लकड़ी की पट्टियों को काम में लाया जाता है। उन्हीं पट्टियों पर रखकर जो चाकू सब्जी काटने के काम में आते हैं उन्हीं से मटन, चिकन काटा जाता है तथा इन चाकूओं व पट्टियों को कभी धोया भी नहीं जाता है।

v डीप फ्रिज जो प्रिजर्वेशन के लिए होता है उसमें वेज-नानवेज दोनों रखे जाते हैं।

v तन्दूरी पर उस्ताद जिन हाथों से चिकन काटते हैं, रोटी का आर्डर आने पर बिन हाथ धोये, रोटी भी बना देते हैं।

v स्टील की एक बड़ी टेबल, जिस पर कटा हुआ चिकन मटन रखते हैं उसी पर वक़्त आने पर चावल भी बनाकर ठण्डा करने के लिए फैलाये जाते हैं जिसमें कई बार खून व मांस भी मिल जाता है।

v फ्रूट सलाद जिसका नानवेज से कोई सम्बन्ध नहीं होना चाहिए, उसे भी टेस्टी बनाने के लिए अण्डा फेंटकर मिलाते हैं।

v रविवार या छुट्टी के दिनों में या पार्टी होने पर जब भीड़ अत्यधिक होती है तब किचन की सफाई, स्वच्छता पर ध्यान न देते हुए ग्राहक के आर्डर समय पर लगाने पर ध्यान होता है। ऐसे समय में किचन को देखना नरक की अनुभूति करने के समान है, क्योंकि हर स्थान पर नानवेज के अवशेष भरे पड़े रहते हैं। ऐसे समय कई बार ग्राहकों को गलतफहमी में वेज की जगह नानवेज डिश भी लग जाती है।

v पानी की शुद्धता भी प्रमाणित नहीं होती है, क्योंकि वह टंकियों में एकत्रित होता है जिसकी साफ – सफाई महीनों से नहीं होती है।

स्टाफ के सदस्यों के अनुभव के आधार पर यह निष्कर्ष सामने आता है कि चाहे छोटा सा रेस्टोरेन्ट हो या बड़ा होटल, यदि वेज-नानवेज साथ-साथ बनता है तो वहाँ इसी प्रकार कार्य होता है।

देखा जाये तो गलत वे लोग नहीं हैं जो ऐसे प्रतिष्ठानों के मालिक हैं या उनमें कार्यरत हैं, क्योंकि वे लोग अधिकांशतः मांसाहारी होते हैं, इसलिए उन सबके लिए एक पूर्ण शाकाहारी की भावना समझना कठिन कार्य है।

साथ ही किचन स्टाफ का कहना है कि बगैर अण्डा या चिकन स्टाक मिलाये कोई व्यञ्जन बनाते हैं तो ग्राहक को वह स्वाद ही नहीं आता जिसकी आदत उसे वर्षों से पड़ी हुई है.

अन्त में मैं केवल इतना ही कहना चाहूंगा कि यह लेख केवल उन लोगों की जानकारी के लिए है जो अज्ञानतावश ऐसे रेस्टोरेन्ट में खाना खाते हैं और उन लोगों के लिए भी जो कुछ सच्चाई जानते तो हैं, पर हाई सोसाइटी व पाश्चात्यता का नकाब ओढ़ने के कारण यह सब अनदेखा कर देते हैं।

यदि इस लेख को पढ़कर एक भी पाठक ऐसे रेस्टोरेन्ट (जहाँ शाकाहार एवं मांसाहार दोनों मिलते हैं) में भोजन करना बन्द कर देता है तो मेरा लेख लिखने का उद्देश्य सफल हो जायेगा।

साभार लेखक : नितिन सोनी (१०२, पार्क रेजीडेंसी, २/४, रेसकोर्स रोड, इन्दौर (म. प्र.)

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