उत्तराखंड! पहाड़ी क्षेत्रों की दुर्गति से ही चली जाती है इंसान की जान,नहीं मिल पाती समय पर सुविधाएं

दुखों का पहाड़……

उत्तराखंड/पौड़ी गढ़वाल- बहुत दुखद घटना ने आज फिर जन्म लिया है एक हंसते खेलते परिवार की खुशियों को निगल लिया है। बात है जिला पौड़ी रिखणीखाल पट्टी पैनो के अंतर्गत देवी डबराड गाँव के 43 वर्षीय प्रेम सिंह रावत पुत्र स्व श्री भगवान सिंह रावत जी को 12 तारिक की शाम 4:46 को घबराहट हुई इस से पहले वो खुद कुछ समझ सकते या किसी को सही से बताते मूर्छित हो कर घर की चौक पर गिर पड़े। फिर घर वालों ने व ग्रामीण लोगों की मदद से उन को घर के अंदर लेजा कर लिटाया किसी के समझ में कुछ नही आ रहा था कि आखिर हुआ क्या।

*अब शुरु हुई प्रेम सिंह को बचाने की मुहिम* गौरतलब है कि डबराड गाँव सड़क से 13km दूर है। कोटड़ी सैण या गाड़ियों पुल उन के लिए सोहलियत है मगर आलम ये है पैदल खच्चर रोड है मगर अकेला ब्यक्ति जंगल के रास्ते दिन में भी कही नहीं जा सकता है।उज्ज्वल भारत में डिजिटल इण्डिया के सपने में जी रहे भारत में जमीनी हकीकत ये है कि डबराड गाँव में संचार ब्यवस्था भी नही है यह गाँव हर तरह से देश व प्रदेश से कट चुका है। करीब 55 लोगों के इस गाँव में सुबिधा के नाम पर एक प्राथमिक विद्यालय है।

बहरहाल ग्रामीण लोग सुरेंद्र पाल व अन्य गाँव से 4km दूर जंगल में आकर फोन के सिग्नल खोज कर फोन लगाने की कोशिश करते रहे 1 घण्टे की जद्दोजहद के बाद देवेश का फोन लगा जो क्षेत्र के ही रहने वाले है। सामाजिक कार्यकर्ता देवेश दिल्ली में नौकरी करते है। मगर तुरंत हरकत में आते हुए उन्होंने 108 मेडिकल सेवा को फोन किया कॉलसेंटर ने रिखणीखाल हॉस्पिटल में उन के फोन को ट्रांसफर किया तो देवेश ने हॉस्पिटल वालों को बोला आप डिंड गाँव तक चले जाओ मरीज को हम खाट पर रख कर डिंड तक लेकर आ जायेंगे या फिर आप को लेने हम आ जायेंगे। मगर हॉस्पिटल का जवाब था कि आप मरीज को कोटड़ी सैण लेकर आ जाओ डिंड की सड़क अभी सरकारी मानकों में पास नही है और हम को परमिशन नही है ऐसे सड़कों पर चलने के लिए लिहाज़ा आप मरीज को कोटड़ी सैण लेकर आ जाओ बाकी हम देखते है न हमारी एम्बुलेंस की गुणवत्ता इतनी अच्छी है कि डिंड गाँव तक जा सकते है न किसी डॉ ने वह गाँव देखा हुआ है। डबराड गाँव के लिए सड़क की स्वीकृति को 12 साल हो चुके है मगर बैठा हाथी ढाई कोस नही चला।

फिर क्षेत्र के हर प्राइवेट डॉ से सम्पर्क साधने की नाकाम कोशिश की गई बिगत 17 दिन से क्षेत्र में प्रतिष्ठित आदित्य बिरला ग्रुप के आइडिया टेलीकॉम के सिग्नल भी नही है। संचार ब्यवस्था के खस्ता हाल ये है कि किसी भी डॉ से सम्पर्क नही हो सका। देवेश ने कोटड़ी सैण के पूर्व क्षेत्र पंचायत अजय पाल सिंह रावत से सम्पर्क किया व अजय पाल ने खुद हर डॉ को सम्पर्क करने की कोशिश करते रहे जैसे ही घटना की खबर रिखणीखाल महोत्सव व्हाट्सएप ग्रुप को पता चली व सभी कार्यकता हरकत में आये देवू खाल से रिंकु ने 108 सेवा को हाथ पांव जोड़ के भेजने की हर नाकाम कोशिश की मगर किसी पर कोई असर नही हुआ। देवेश के द्वारा सीएमओ पौड़ी व जिलाधिकारी पौड़ी से संपर्क किया गया मगर सब जगह से यही कहा गया कि रिखणीखाल के हॉस्पिटल से ब्यवस्था हो रही है मगर रिखणीखाल के प्राथमिक चिकित्सालय में न तो कोई डॉ है न दवाईयां पुनः निर्माणाधीन डिस्पेंसरी अंदर गाँव आठबाखल के डिस्पेंसरी की हालत से क्षेत्रवासी भलीभांति वाकिफ है। 4 साल से इस डिस्पेंसरी का कार्य प्रगति पर है मात्र 3 कमरों के डिस्पेंसरी को पुनः जीवित करने में 4 साल का समय लग चुका है। क्षेत्र का हर प्राइवेट डॉ डबराड गाँव जाने में असमर्थ था।

कोई भी डॉ तैयार नही था करीब 4 घण्टे चले इस जीवन मौत की लुक्का छुपी ने आखिर रात के 9:12 बजे शांति फैला दी जब धनपाल सिंह रावत व किशन सिंह रावत ने मरीज के दुनियां छोड़ने की पुष्टि कर दी।शाम 4:46 से शुरु हुआ घटना आखिर प्रेम सिंह के मौत की पुष्टि के साथ रात्रि 9:12 शांत हो गई। मरीज के साथ साथ हर ग्रामीण व क्षेत्रीय सरकारी गैर सरकारी डॉ की भी जिम्मेदारी भी खत्म हुई। प्रेम सिंह अपने पीछे 2 बेटी 2 बेटे छोड़ के मात्र 43 साल की उम्र में चले गये ।

यह घटना ये दिखाती है कि पलायन हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। जिस ने बेहतर शिक्षा व स्वास्थ्य के लिए गाँव छोड़ा है उस ने जीवन में सब से अच्छा फैसला लिया है। आखिर किस वजह से हम लोग रहे पहाड़ों में प्रेम सिंह पढ़ा लिखा ब्यक्ति था मगर मरते दम तक अपनी माटी को न छोड़ने की सनक आज उस को निगल गई व उस के परिवार को कभी न भूलने वाली पीड़ा दे गई। आज शासन प्रशासन क्षेत्रीय लोग सब लाचार थे सब को सिर्फ मरीज के खुद ठीक होने व मरने का इंतजर था। यह हालत एक डबराड गाँव का नही उत्तराखण्ड के हर गाँव का है। शिक्षा स्वास्थ्य सड़क के अभाव में कुछ गाँव छोड़ रहे है तो कुछ प्राण।

हर पहाड़ी चाहता है कि हम गाँव न छोड़ें मगर आखिर किस के सहारे जिये जब यह सोचा जाता है तो हर सवाल का अंत हो जाता है। प्रेम सिंह की मौत एक छुटकारा है हर गम से हर दर्द से। प्रेम सिंह अपने गाँव न छोड़ने की अग्नि शपथ को निभा गये और अग्नि लीनता के मुहाने खड़े है। मगर तमाचा मार गए उन हुक्मरानों के गाल पर जो विकास पुरुष होने का दावा करते है। जो नए भारत के निर्माण में लगे है उन को सच्ची ग्रामीण भारत की तस्बीर दिखा दी है आज।

क्षेत्र की यह पहली घटना नही है मगर आखरी भी नही है। लोगों का यह अपनी माटी के प्रति बलिदान है या आत्महत्या यह तो समय तय करेगा मगर आज एक परिवार फिर से अभाव में अनाथ हो चुका है।

-इन्द्रजीत सिंह असवाल,पौड़ी गढ़वाल

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