उत्तराखंड !18 सालाें में क्या खोया? क्या पाया?

उत्तराखंड-देश के आजादी के साथ उत्तराखंड से पलायन शुरू हुआ। मुख्य रोजगार घरेलू नौकर।
पैतृक भूमि एवं परस्पर अधिक लगाव का परिणाम ही था कि घरेलू नौकरी से एक-एक पाई जमा करके गाँवों में स्कूल खोले, प्रवास में भी सामुदायिक भवन बनाऐ और रात्रि स्कूलों में पढ़ाई की।
अलग उत्तराखंड राज्य की लड़ाई में भागीदारी की।
धर्म-जाति, पर्वत-घाटी, जौनसार-भावर तराई अथवा कुमाऊ-गढवाल के नाम पर हमको बांटकर राजनीति करने वालों की जड़ें हिला दी। हम जहाँ भी थे एकजुट हुए और लडे, परिणामस्वरूप उत्तराखंड राज्य बना हमें उत्तराखंडियों के रुप में सम्मान और पहिचान मिली।
उत्तराखंड बनने के बाद उसे संवाँरने और संम्भालने की बजाय हम लापरवाह हो गए, जिसके कारण राज्य का चुनावी गणित पूरी तरह उन भेडियों के पक्ष में झुकता चला गया जो उत्तराखंड के प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष में बिरोधी हैं।
राज्य बनने के बाद पलायन में जबरदस्त बढोतरी हुई।
मुख्य रोजगार होटल उद्योग।
पैतृक भूमि के प्रति निराशा, कारण शिक्षा, स्वाथ्य, रोजगार, परिवहन और बाजार का आभाव एवं सरकारों की उदासीनता।
राजनीति और जंगल के जानवारों के आतंक तथा निकम्मी सरकार के कारण गाँव के गाँव खंडहर में तब्दील हो गए हैं।
क्षेत्रीय ताकत और राज्य का उद्देश्य कमजोर हुआ है। माफिया तंत्र मजबूत हुआ है। राज्य गठन के समय किए गए २९ संसोधन गले की हड्डी बन गए हैं, उत्तराखंड विबादों का प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा पर देहरादून राजधानी लूट-खसोट का अड्डा बन गया है। सरकारें केवल और केवल घोटाले कर रहे हैं।
गैरसैण स्थाई राजधानी की माँग पर लोग जागरूक होने तो लगे हैं, परन्तु कुछ ही क्षेत्रीय ताकत को मजबूत देखना चाहते है। शेष की ढपली अलग राग अलप रही है।
जंग जारी है

महागठबंधन, मलाई या भलाई:-
_कश्मीर से लेकर केरल तक, गुजरात से लेकर पूर्वोत्तर में त्रिपुरा, आसाम, मणिपुर, मेघालय तक पूरे देश में गठबंधन पर गठबंधन की राजनीति।
बेचारा बकरा! बकरे के उपर गधा, गधे के उपर कुत्ता, कुत्ते के उपर बिल्ली, बिल्ली के उपर मुर्गा,, मुर्गे के उपर बोतल असली, नकली ठर्रा, बोतल के साथ नमकीन-अण्डे, डन्डे डण्डों पर झंडें और दो हजार के नोट, और इन सबके ऊपर भेडिया।*

*उत्तराखंड के निकम्मों की बहानेबाजी, राष्ट्र फस्ट*
_उत्तराखंड के अंदर, प्रधान से लेकर सांसद तक प्रमुख से लेकर मुख्यमंत्री तक, बिभिन्न न्संगठनों के सदस्य से लेकर अध्यक्ष तक अपने जिम्मेदारी से बचने के लिये दिल्ली केन्द्र से जुडे राष्ट्रीय मुद्दों को के नाम के पीछे छिप रहे हैं
बड़ी बिडंम्बना है कितने सहजता से हमारे लोग हमारी भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।
भाजपा कांग्रेस जो उत्तराखंड राज्य की मांग से लेकर आज भी उत्तराखंड राज्य की अवधारणा की जडों को खोदकर उसे फेल करने में जुटे हैं, उनके झ्ंण्डे ढोने वाले लोग अपने को उत्तराखण्ड के हिमायती बताने के जुगाड़बाजी में हैं। और २ अक्तूबर १९९४ में लालकिले के पीछे की यादों को ताजा कर रहे हैं।

हमें अपनों ने ही मारा गैरों में कहाँ दम था।

राष्ट्र प्रथम के जुमलेबाजों,
क्या उत्तराखंड एवं उत्तराखण्डी भारत राष्ट्र के अंग नहीं हैं?
उत्तराखंड की माँ-बहनें क्या भारत राष्ट्र की नहीं हैं?
उत्तराखंड की खुशहाली एवं बेहतरी का क्या भारत से कोई संबंध नहीं है?
उत्तराखंड में धारा ३७१ क्या भारत राष्ट्र के हित में नहीं है?
उत्तराखंड में चकबंदी क्या भारत राष्ट्र के हित में नहीं है?
उत्तराखंड की जन भावना का आदर करना क्या भारत राष्ट्र के हित में नहीं है?
आखिर राष्ट्र प्रथम केवल दिल्ली में बैठे हूकमरानाओं एवं उनके अपने लोगों के जेब भरने के लिए ही है ।

या फिर

वन मंत्री हरक सिंह रावत की विधानसभा कोटद्वार के अन्तर्गत लैंसडाउन वन प्रभाग में राजनैतिक संरक्षण के चलते हजारों हरे पेड़ों का कटान जारी…

उत्तराखण्ड के वन मंत्री हरक सिंह रावत की विधानसभा कोटद्वार के अन्तर्गत लैन्सडाउन वन प्रभाग में बेहिसाब हरे चीड़, खैर, तुन आदि पेड़ों के कटान की अनुमति दी जा रही है, जिसका चार्ज हरिद्वार में एसडीओ के रूप में तैनात सन्तराम को लैन्सडाउन वन प्रभाग का डीएफओ बनाकर दिया गया है, यह भी जानकारी प्राप्त हुयी है कि सन्तराम को एसडीओ से सीधे डीएफओ बनाने में भी राजनैतिक संरक्षण के चलते विभागीय नियमों को ताक पर रखा गया है और सन्तराम को खासतौर पर लकड़ी कटान की फाइलें स्वीकृत करने के लिये कोटद्वार लाया गया है, इससे पहले इस वन प्रभाग में ईमानदार अफसर मयंक शेखर झा डीएफओ के रूप में तैनात थे और उन्होने हरे पेड़ों के कटान पर रोक लगायी हुयी थी, उनकी मौजूदगी में हरे पेड़ों का कटान सम्भव नहीं था, इसीलिये सन्तराम को इस वन प्रभाग में लाया गया, नवम्बर 2017 में पदभार ग्रहण करने के बाद से ही वे विवादों में हैं, दिसम्बर माह में “जागो उत्तराखण्ड” के कैमरे पर डीएफओ सन्तराम यह कहते हुए कैद हुए थे, कि उन्होंने कोटद्वार की भाजपा नेत्री ममता थपलियाल देवरानी के पिता को मन्त्री जी के इशारे पर हरे पेड़ों के कटान की अनुमति दी है, शिवालिक रेंज की तत्कालीन वन संरक्षक मीनाक्षी जोशी ने सन्तराम को नियमविरुद्ध भारी मात्रा में हरे स्वस्थ पेड़ों के कटान की अनुमति देने का दोषी पाते हुए, पेड़ों के कटान पर रोक लगा दी थी और मामले की विभागीय जांच के आदेश दे दिए थे , तब 283 हरे स्वस्थ चीड़ के पेडों को वन माफियाओं द्वारा बैखौफ होकर काटा गया था, बाद में प्रमुख मुख्य वन संरक्षक उत्तराखण्ड जय राज ने भी हरे पेडों के कटान की अनुमति न देने के सम्बन्ध में सन्तराम को चेताया था, लेकिन सारे आदेशो को दरकिनार करते हुए अब फिर से सन्तराम ने हरे स्वस्थ चीड,खैर और अन्य प्रजातियों के पेड़ों पर आरियाँ चलवानी शुरू कर दी है “जागो उत्तराखण्ड” की टीम जब कल शाम को लैंसडाउन वन प्रभाग में विभिन्न स्थानों पर अवैध कटान की कवरेज कर के लौट रही थी, तो दुगड्डा के पास हरे पेड़ों से लदा एक ट्रक दिखाइ दिया, लकड़ी की इन डाटों पर नम्बरिंग भी नहीं थी, ड्राइवर से पूछे जाने पर वह लकड़ी की निकासी का कोई भी कागजात दिखाने पर असफल रहा, जिसके बाद डीएफओ सन्तराम को उक्त जानकारी दी गयी और साथ ही अपनी सुरक्षा के लिये कोटद्वार के एडिशनल एसपी वर्मा को पुलिस फोर्स उपलब्ध कराने हेतु सूचित किया गया, कुछ समय बाद ही दुगड्डा चौकी और लैंसडाउन के थानाध्यक्ष मौके पर पहुंच गये, लेकिन वन विभाग का कोई भी अधिकारी एक घण्टे से अधिक समय तक मौके पर नहीं पहुंचा, जिसके बाद उत्तराखण्ड के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक जय राज को वन विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के बारे में जानकारी देने पर दुगड्डा रेंज के रेंजर किशोर नौटियाल मौके पर पहुंचे, लेकिन ट्रक का ड्राइवर लकड़ी की निकासी के कागजात उनको भी नहीं दिखा पाया, धीरे धीरे वहां पर वन तस्करों की गाड़ियां पहुंचने लगी,जिसमें कोटद्वार की पूर्व महिला भाजपा जिलाध्यक्ष ममता थपलियाल देवरानी के पिता और भाई शोभित थपलियाल शामिल थे, ये लोग “जागो उत्तराखण्ड” के प्रतिनिधियों को गाली गलौच और ट्रक से कुचलने की धमकी देने लगे, जो कि कैमरे में कैद हो गया, काफी समय बाद लैंसडाउन वन प्रभाग के रेंजर दिनेश चन्द्र घिल्डियाल स्वयं लकड़ी निकासी का रवाना लेकर वहां पहुंचे और लकड़ी निकासी के बारे में पूछे जाने पर कोई भी सन्तोषजनक जवाब नहीं दे पाये, जिससे स्पष्ट होता है कि यह लकड़ी अवैध तरीके से ले जायी जा रही थी, “जागो उत्तराखण्ड” को लैंसडाउन वन प्रभाग के अधिकारियों और वन माफिया को राजनैतिक संरक्षण और मिली भगत के चलते उक्त मामले में कोई कार्यवाही की उम्मीद नहीं है, लेकिन फिर भी वन विभाग के उत्तराखण्ड मुखिया जय राज की ईमानदार छवि के चलते अभी भी उम्मीद है कि लैंसडाउन वन प्रभाग में हरे पेड़ों के कटान पर यथाशीघ्र रोक लगायी जाय।
-पौड़ी से इन्द्रजीत सिंह असवाल

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