राजस्थान-सादडी| नगर के राणकपुर रोड स्थित ज्योति बा फूले विद्या मंदिर मे महर्षि वाल्मीकि की जयंती मनाई गई. जिसमे प्रधानाचार्य एवं अध्यापको ने महर्षि वाल्मीकि के समक्ष दीप प्रज्वलित करके पुष्प अर्पित किये. उनके जीवन पर प्रकाश डाला. बताया कि महर्षि वाल्मीकि अयोध्या के समीप तमसा नदी के किनारे तपस्या करते थे. वह प्रतिदिन प्रातः स्नान के लिए नदी में जाया करते थे. एक दिन जब वह सुबह स्नान करके वापस लौट रहे थे, तो उन्होंने एक क्रौच पक्षी के जोड़े को खेलते हुए देखा.
वाल्मीकि उन्हें देखकर आनंद ले रहे थे, तभी अचानक एक शिकारी ने तीर चलाकर क्रौच पक्षी के जोड़े में से एक पक्षी को मार दिया तब दूसरा पक्षी पास के पेड़ में बैठकर अपने मरे हुए साथी को देखकर विलाप करने लगा.इस करुण दृश्य को देखकर वाल्मीकि के मुख से अपने आप एक कविता निकल गयी.
हिन्दी अनुवाद-: हे शिकारी तुमने काम में मोहित क्रौच पक्षी के जोड़े में से एक को मार दिया है, इसलिए तुम कभी भी प्रतिष्ठा और शांति को प्राप्त नहीं कर सकोगे. इन्ही वाल्मीकि ने आगे चलकर विश्वप्रसिद्ध “रामायण” की रचना की. महर्षि वाल्मीकि का जन्म हजारो वर्ष पूर्व भारत में हुआ था. ईश्वरीय प्रेरणा से वह सांसारिक जीवन (मोह) को त्याग कर परमात्मा के ध्यान में लग गये.उन्होंने कठोर तपस्या की. तपस्या में वे इतने लीन हो गए की उनके पूरे शरीर में दीमक ने अपनी वाल्मीक बना लिया, इसी कारण इनका नाम वाल्मीकि पड़ा. उसके बाद बच्चों ने वाल्मीकि के ग्रंथो के श्लोक सुनाएं.
इस दौरान प्रधानाचार्य प्रवीण प्रजापति, अध्यापक नारायण राईका, संजय सेन, जीनल समेत कई अभिभावक उपस्थित थे.
पत्रकार दिनेश लूणिया