बीजेपी मे भी पनपने लगा परिवारवाद

आजमगढ़ – बात परिवारवाद की हो तो अंगुली सीधे सपा, बसपा, कांग्रेस पर उठती है। बीजेपी वर्षों से इन दलों को इस मुद्दे पर घेरते आयी है। कहीं न कही जनता ने भी इस बात को समझा है और वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में इनकी दुर्गति की बड़ी वजह परिवारवाद रहा है लेकिन सवाल यह है कि क्या बीजेपी में परिवारवाद नहीं है। शीर्ष नेतृत्व भले इस बात को नकारे लेकिन सच यह है कि यह खेल सपा, बसपा और कांग्रेस की तरह इस दल में भी खेला जाता रहा है। पिछले 14 वर्षो में यूपी में बीजेपी के पतन का बड़ा कारण परिवारवाद, जातिवाद और वर्चश्व की लड़ाई ही रहा है। अमित शाह के नेतृत्व संभालने के बाद स्थित थोड़ी बदली जरूर है लेकिन कुछ नेता आज भी पुराने ढर्रे पर है और रिश्तों को मजबूत बनाने के चक्कर में बीजेपी को कमजोर कर रहे है। जिसका खामियाजा पार्टी को 2019 के लोकसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। खासतौर पर मुलायम सिंह यादव के संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ में।

गौर करें तो कल्याण सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में ही बीजेपी में वर्चश्व की लड़ाई शुरू हुई थी और पार्टी कई खेमे में बंट गयी थी। लालजी टंडन और कलराज मिश्र का अगल खेमा हमेशा सक्रिय रहा। कलराज मिश्र एक ऐसा नाम है जिनका आजमगढ़ से सीधा जुड़ाव रहा। वर्ष 1961-62 में कलराज मिश्र जनसंघ के संगठन मंत्री के तौर पर यहां काम करना शुरू किये। नगरपालिका में इनका आवास एलाट था। इनके दोनो पुत्र अमित और राजन तथा पुत्री हेमलता की प्रारंभिक शिक्षा भी यहीं केंद्रीय विद्यालय से हुई। कुछ समय उन्होंने गोरखपुर में संघ के लिए भी काम किया था। करीब 1983 तक कलराज मिश्र और उनके परिवार के लोग यहां रहे। बाद में बच्चे शिक्षा के लिए बाहर चले गए और स्वयं कलराज मिश्र भाजपा की प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हो गये। जो आवास कलराज के नाम पर एलाट था उसी में उनके साले और उनकी पत्नी भी रहती है।

वर्ष 1991 में बीजेपी राम मंदिर मुद्दे पर पहली बार सत्ता में आयी तो कलराज मिश्र का कद काफी बढ़ गया। इसके बाद इन्होंने अपने साले के परिवार को राजनीति में प्रश्रय देना शुरू किया। वर्ष 1995-96 के नगरपालिका चुनाव में जिले के सारे नेताओं को दरकिनार कर कलराज मिश्र ने अपने साले की पत्नी माला द्विवेदी को नगरपालिका अध्यक्ष का प्रत्याशी भी बनवाया और वे चुनाव भी जीती लेकिन नगर के लोगों ने उपेक्षा के कारण उन्हें दोबारा इस कुर्सी पर आसीन नहीं होने दिया। बाद में उन्हें विधानसभा का टिकट दिलाने का प्रयास हुआ लेकिन नेतृत्व नहीं माना। बाद में बीजेपी नेता स्व. राजेंद्र मिश्र के पुत्री की शादी कलराज मिश्र के पुत्र से हो गयी। इसके बाद इन्होंने इस परिवार को भी खूब प्रश्रय दिया। स्व. राजेंद्र मिश्र मूलरूप से लालगंज क्षेत्र के रहने वाले है लेकिन उनके पुत्र अखिलेश मिश्र को कलराज मिश्र के दबाव में आजमगढ़ सदर से विधानसभा चुनाव लड़ाया गया। यह अलग बात है कि वे चुनाव हार गए।

इसके अलाव बीजेपी अध्यक्ष डा. महेंद्र नाथ पांडेय का भी आजमगढ़ से सीधा जुडाव रहा है। उनके पिता यहां पोस्ट आफिस में कार्यरत थे जिसके कारण महेंद्र नाथ पांडेय का यहां काफी आना जाना था। आजमगढ़ के बार्डर से सटे गाजीपुर जनपद में घर होने के कारण इनकी ज्यादातर रिश्तेदारियां भी आजमगढ़ में हैं। वर्ष 1996 में बीजेपी सरकार के दौरान इनका पूर्व विधायक नरेंद्र सिंह से छत्तीस का आंकड़ा था पार्टी में कद के मामले में नरेंद्र सिंह इनपर हमेशा भारी पडे लेकिन वर्ष 2014 में केंद्र में बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी तो इन्हें मंत्री बनाया गया। बाद में इन्हें यूपी का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया। महेंद्र नाथ पांडेय भी कलराज मिश्र के रास्ते पर चले। 14 साल के बनवास के बाद जब यूपी में बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी तो इन्होंने भी अपने साले और उनकी पत्नी को प्रश्रय देना शुरू किया। पहले इन्होंने अपने साले की पत्नी संगीता तिवारी को नरपालिका अध्यक्ष का टिकट देना चाहा लेकिन पार्टी के दवाब के कारण ऐसा नहीं कर सके। कारण कि संगीता अभी दो साल से ही राजनीति में सक्रिय हुई है। अब इन्होंने सारी पुरानी महिला नेताओं को दरकिनार कर संगीता तिवारी को महिला आयोग का सदस्य बनवा दिया। जिसके कारण प्रदेश अध्यक्ष खूब चर्चा में है।
अब बीजेपी के नए जिलाध्यक्ष जो गृहमंत्री राजनाथ सिंह के बेहद करीबी है उनपर जातिवाद का आरोप लगना शुरू हो गया है। कहते है कि जब अध्यक्ष का चुनाव होना था तो जयनाथ सिंह का नाम कहीं नहीं था लेकिन पंकज सिंह के दबाव में उन्हें अध्यक्ष बनाया गया। इसके बाद जब जुलाई माह में पीएम मोदी का कार्यक्रम आजमगढ़ में तय हुआ तो सहजानंद राय को रैली का प्रभारी बनाया गया लेकिन जयनाथ सिंह ने अपनी सत्ता चलाते हुए अपने करीबी क्षत्रीय नेताओं को रैली की जिम्मेदारी सौंप दी। सीएम कार्यक्रम की तैयारी देखने के लिए।

रिपोर्ट-:राकेश वर्मा आजमगढ़

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