जानें क्यों लगा है योगी आदित्यनाथ के नाम के आगे योगी और आखिर में नाथ

अलाहाबाद को प्रयागराज किए जाने के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ फिर से चर्चाओं में है… अपने काम करने के तरीके और योगी होने के बावजूद सियासत में अपने वजूद को लेकर वो हमेशा निशाने पर रहे है… कई शहरों के नाम बदलने पर तमाम समर्थन और विरोध के बीच उनका पुराना नाम अजय सिंह बिष्ट भी चर्चाओं में रहता है…
अक्सर उनके आलोचक ये कहते मिल जाते है कि एक सन्त का राजनीति में क्या काम..?
लेकिन ज्यादातर लोग क्या जानते है कि उनके नाम बदलने के पीछे की वजह क्या है..?
क्या महत्व है उनके नाम से पहले ‘योगी’ और नाम के अंत मे ‘नाथ’ का…?
आखिर क्यों अमरनाथ, केदारनाथ, बद्रीनाथ और गोरखनाथ भी नाथ शब्द से जोड़े गए है…?
‘नाथ’ से जुड़े हर सवाल का एक ही जवाब है ‘भोलेनाथ’…

तो आखिर क्या रिश्ता है भोलेनाथ का गोरखनाथ से, गोरखनाथ का योगी आदित्यनाथ से और आदित्यनाथ का नाथ सम्प्रदाय से…?

शिव को सबसे बड़ा और पहला योगी माना जाता है… शिव को नाथ सम्प्रदाय में आदियोगी कहा जाता है… शिव आदियोग के रहस्य पुंज है… शिव है तो योग है… योग है तो योगी है… योगी है तो शक्तियां है और इन्ही शक्तियों से शुरू हुआ एक पंथ ‘नाथपंथ’…

नाथ सम्प्रदाय में योगी बनने की प्रकिया बचपन से शुरू होती है और इसके पहले चरण में कानों में एक कुंडल पहनाया जाता है… वाल्मीकि रामायण में इस बात का जिक्र है लंका विजय के बाद प्रभु राम ने बाबा गोरखनाथ से दीक्षा ली थी और बाबा गोरखनाथ ने श्री राम के कानों में कुंडल पहनाया था, जिसे दर्शन कुंडल कहा जाता है… ये दर्शन कुंडल आप योगी आदित्यनाथ, बाबा गोरखनाथ की मूर्तियों में और नाथ सम्प्रदाय से जुड़े हर योगी के कानों में देख सकते है… कुंडल वैराग्य का प्रतीक है…

इसके अलावा योगी काले ऊन का एक जनेऊ भी धारण करते है… इस जनेऊ के चार हिस्से होते है…पवित्री, रजस(ब्रह्म), रूद्राक्ष या तमस( शिव) , सत्व ( विष्णू) और सबसे अंत मे नादि…

योगी परम्परा के योगियों के लिए केश रखने को लेकर भी नियमावली होती है… या तो दाढ़ी मूछों सहित जूट जटाएँ धारण करिए या कोई भी केश नहीं… यही वजह है कि तमाम योगी घनी जटाओं के साथ नज़र आते है वहीं योगी आदित्यनाथ बिना केश के… उनके गुरु महंत अवैद्यनाथ केश और दाढ़ी दोनो रखते थे…

योगी आदित्यनाथ हमेशा गेरुआ वस्त्र पहनते है, योगी परम्परा में गेरुआ वस्त्र अग्नि के प्रतीक माने जाते है जो इस बात का प्रमाण माना जाता है कि इंसान सांसारिक मोह माया को मुखाग्नि देकर योगी बन चुका है…

पौराणिक रूप से नाथ सम्प्रदाय की कहानी शुरू होती है शिव पुराण से… जब भगवान शिव माता पार्वती को आदियोग का रहस्य सुना रहे थे तब माता पार्वती को नींद आ गई… माता पार्वती तो आदियोग का रहस्य नही सुन पाई पर वहाँ मौजूद एक मछली ने ये रहस्य सुन लिया… वो मछली ही अगले जन्म में योगी मत्स्येंद्रनाथ या मछेन्द्रनाथ बन के जन्मी… शिव पुराण में ये वर्णन भी मिलता है कि भगवान शिव ने धरती पर नौ नाथों के रूप में अवतार लिया था, मत्स्येन्द्र नाथ उनमे से एक थे… हर नाथ आदियोग के रहस्य को जानता था…

एक और पौराणिक कहानी के अनुसार बाबा मत्स्येन्द्र नाथ ने भभूत से एक बालक उत्पन्न किया था जो आगे चलकर बाबा गोरखनाथ के नाम से मशहूर हुए… बाबा गोरखनाथ सतयुग में शिव के साथ, त्रेतायुग में राम के साथ और द्वापरयग में पांडवों के साथ और कलयुग में सन्त कबीर के साथ मिलता है… बाबा गोरखनाथ के चारो युगों में मौजूदगी के बारे में कहा जाता है कि वो हठयोग से मृत्यु को जीत चुके थे…

ये तो थी पौराणिक कहनियाँ, आधुनिक इतिहासकार मत्स्येन्द्र नाथ को आठवीं से बारहवीं सदी का एक हठयोगी मानते है जो बंगाल या आसाम में एक मछुआरे के घर पैदा हुए थे… मत्स्येद्रनाथ हठयोग के संस्थापक माने जाते है उन्होंने ही हठयोग पर एक ग्रन्थ “कालज्ञाननिर्णय:” लिखा था… जहां आज गौहाटी का कामख्यिनी मन्दिर है वह बाबा मत्स्येन्द्रनाथ की योग साधन भूमि थी और गौहाटी का असली नाम भी योगिहठी था…

नेपाल में बाबा मत्स्येद्रनाथ का भव्य मंदिर है और उन्हें वहां “आर्य अवलोकितेश्वर” के नाम से पूजा जाता है… मन्दिर में मत्स्येंद्रनाथ जिस रूप में स्थापित है उसे मत्स्येन्द्र आसन कहा जाता है… आज मत्स्येन्द्र आसन को मधुमेह रोगियों के लिए सबसे उत्तम माना जाता है… बाबा मत्स्येद्रनाथ आसाम के रास्ते होते हुए नेपाल गए थे और उनके जाने की वजह थे उनके शिष्य बाबा गोरखनाथ… बाबा मत्स्येद्रनाथ के शिष्य बाबा गोरखनाथ को नेपाल अपना राष्ट्रीय इष्टदेव मानता है… नेपाल के सिक्कों और राष्ट्रीय चिन्हों पर बाबा गोरखनाथ की छवि ही मिलेगी… बाबा गोरखनाथ के सम्मान में ही नेपाली खुद को गोरखा कहते है… बाबा गोरखनाथ ने हठयोग पर कई ग्रन्थ लिखे जिनमें “गोरखवाणी” और “सिद्धिसिद्धान्त पद्धति” सबसे प्रमुख है… हड़प्पा मोहनजोदड़ो की खुदाई में 5000 साल पुरानी भद्रासन आसन करती हुई मूर्तियां मिली है जो इस बात का प्रमाण है कि हठयोग सदियों पुराना है… हठयोग की बुनियाद चार चीज़ों पर आधारित है, आसन, प्राणायाम, मुद्रा और नादानुसंधान…

बाबा गोरखननाथ के ग्रन्थों से प्रभावित होकर ‘योगी सुआत्माराम’ ने “हठयोग प्रदीपिका” नामक पुस्तक लिखी थी जिसमे कुल 84 आसनों का विस्तृत वर्णन है… “हठयोग प्रदीपिका” के आसन ही आज योग बनकर पूरी दुनिया मे छाए है… हठयोग में शरीर को दुख का नही बल्कि मृत्यु को जीतने का स्रोत माना गया है… यही आकर योग स्वास्थ्य का पर्याय बनता है…

योगी आदित्यनाथ यूपी के मुख्यमंत्री होने के साथ साथ गोरखपुर के गोरखनाथ मन्दिर के महंत भी है जो एक सदियों पुरानी परम्परा के वाहक है… अजय सिंह बिष्ट होना बेहद आसान है लेकिन योगी आदित्यनाथ होना नही… हठयोग उनके फैसलों और कार्यशैली में साफ साफ नज़र आता है… अजय सिंह बिष्ट से योगी आदित्यनाथ होने का एक ही मतलब है हिंदुस्तान पुनर्जीवित हो रहा है…
– साभार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

किसी भी समाचार से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है।समाचार का पूर्ण उत्तरदायित्व लेखक का ही होगा। विवाद की स्थिति में न्याय क्षेत्र बरेली होगा।