अब सियासतकारों की निगाह संजय अरोड़ा और गौरव गोयल पर

हरिद्वार/रुड़की- नगर निगम के चुनाव को लेकर चुनावी जमीन लगभग पूरी तरह तैयार हो चुकी है। सियासतकार टिकट के दावेदारों के साथ ही उनकी गतिविधियों पर करीबी निगाह रखे हुए हैं। टिकट ना होने पर कौन-कौन निर्दलीय चुनाव लड़ सकता है। इस संबंध में दिमाग खपाया जा रहा है। लोकतांत्रिक जनमोर्चा संयोजक सुभाष सैनी का सर्व समाज सम्मेलन में निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान हो चुका है। उक्रांद अध्यक्ष दिवाकर भट्ट और पूर्व विधायक हाजी मोहम्मद शहजाद ने उनका खुलकर समर्थन किया है। जिसके चलते अब सियासतकार फिलहाल भाजपा नेता संजय अरोड़ा और गौरव गोयल पर निगाह लगाए हुए हैं। क्योंकि यह दोनों नेता ही चुनावी मैदान में पूरे दमखम के साथ लगे हुए हैं। टिकट की जोड़-तोड़ से बेपरवाह यह दोनों नेता अपने-अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए गली मोहल्लों तक दौड़ रहे हैं। धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक कार्यक्रमों मैं शिरकत करने के अलावा यह दोनों नेता पारिवारिक संपर्क अभियान भी जारी रखे हुए हैं। हालांकि वह सब नेता सक्रिय हैं जो कि विभिन्न पार्टियों से टिकट मांग रहे हैं। लेकिन जितने सक्रिय संजय अरोड़ा और गौरव गोयल है। इतने सक्रिय अन्य कोई दावेदार नहीं है। जिस कारण सियासतकार इनकी सक्रियता के मायने निकाल रहे हैं। अधिकतर सियासत कारों का कहना है कि संजय अरोड़ा और गौरव गोयल की तेजी बता रही है कि यह दोनों चुनाव मैदान में उतरने जा रहे हैं। बता दे कि संजय अरोड़ा दो बार विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं। सवाल जीत हार का नहीं । लेकिन संजय अरोड़ा दोनों ही चुनाव बड़ी मजबूती के साथ लड़े। दोनों ही चुनाव में उन्होंने विरोधियों को भी यह कहने को मजबूर किया कि चुनाव बहुत ही अच्छा लड़ रहे हैं। इस बार भी उनकी तैयारी इतनी अधिक है कि विरोधियों के जुबान तक पर भी फिलहाल यही है कि संजय अरोड़ा चुनाव जरूर लड़ेंगे। गौरव गोयल के बारे में तो यह भी कहा जा रहा है कि वह अधिक भागदौड़ इसलिए कर रहे हैं ताकि स्थानीय स्तर से उनके पक्ष में यह रिपोर्ट पार्टी के शीर्ष नेतृत्व तक पहुंचे कि उन्होंने चुनावी जमीन को काफी पुख्ता कर रखा है। इसीलिए उन्हें पार्टी का सिंबल दे दिया जाए। लेकिन चुनावी विश्लेषकों का कहना है कि वर्ष 2014 के बाद से भाजपा की स्थिति बदल गई है। 2014 से पहले टिकट के बजाय धरातल पर काम करने जरूरी होता था। लेकिन अब मोदी-शाह की भाजपा में धरातल पर काम करने के बजाए टिकट के लिए अधिक काम करना होता है। क्योंकि अब टिकट इतनी आसानी से नहीं मिल पाता। भाजपा शीर्ष नेतृत्व इस बात को समझता है कि चुनावी जमीन भाजपा के लिए काफी उर्वरक है।

इसीलिए अपने स्तर से प्रत्याशी का नाम तय कर भेजा जाता है। वहीं कांग्रेस के युवा नेता सचिन गुप्ता की सक्रियता को भी सियासतकार गंभीरता से ले रहे हैं। सियासत कार यह बात तो पूरी तरह समझ गए हैं कि सचिन गुप्ता निश्चित रूप से चुनाव मैदान में उतर रहे हैं। क्योंकि उनके द्वारा जिस तरह से सोशल मीडिया के साथ ही धरातलीय जनसंपर्क अभियान शुरू किया गया है। उससे उनके चुनाव लड़ने की संभावना को बल मिल रहा है। सचिन गुप्ता भी जिस तरह से युवाओं की टीम को जोड़ रहे हैं। उनकी पत्नी पूजा गुप्ता सामाजिक और धार्मिक संगठनों से जुड़कर उन्हें अपने पति के विजन के बारे में जानकारी दे रही हैं ।इससे भी साफ हो जाता है कि सचिन गुप्ता टिकट मिले या ना मिले नगर निगम के चुनाव में उतरने जा रहे हैं । जगह-जगह होर्डिंग और सोशल मीडिया पर उनके पक्ष में माहौल बनाने के लिए भी काफी कार्यकर्ता काम कर रहे हैं। सचिन गुप्ता को चुनाव लड़ाने का पूरा अनुभव है। वह कई जीत के चुनाव लड़ा चुके हैं ।लेकिन इस बीच एक सवाल उठ रहा है कि संजय अरोड़ा, गौरव गोयल चुनाव मैदान में उतरते हैं तो क्या सचिन गुप्ता फिर भी चुनाव मैदान में उतरेंगे?इस बारे में बहुत सारे लोगों का यह भी कहना है कि इन तीनों का संपर्क वाला वोट अलग-अलग है। तीनों के संपर्क वाले परिवार भी अलग हैं। इसीलिए इनके चुनाव मैदान में उतरने से एक दूसरे के चुनाव पर कहीं कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है। सचिन गुप्ता और संजय अरोङा के बारे में यह भी कहा जा रहा है कि यदि सुरेश जैन का टिकट होता तो वह चुनाव मैदान से हट सकते थे। लेकिन ऐसा कुछ है नहीं। हालांकि कुछ लोगों का यह भी कहना है कि यदि अजय सिंघल का टिकट होता तो भी सचिन गुप्ता मैदान छोड़ सकते थे। सचिन समर्थकों के मुताबिक यह बातें भी सच्चाई से परे हैं। अब यहां पर सवाल यह भी उठ रहा है कि यदि तीनों चुनाव मैदान में उतरते हैं तो यह है भाजपा के वोट बैंक वैसे ही कितना अपनी ओर खींच पाएंगे।

– रूडकी से इरफान अहमद की रिपोर्ट

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